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स्वरलता अलग अलग संगीतकारों के संगीत में ♫ ♪ (LATA MANGESHKAR WITH VARIOUS MUSIC DIRECTORS)

November 30, 2021
"प्रातःकाल की कोमल सुनहरी किरणों को, ओस बुंदों की स्याही मे भिगोकर, कमल तंतुओं की कलम से वायु तरंगों की हल्की कम्पनों पर, तितलियों के रंग-बिरंगे पंखोंपर लिखा हुआ सम्मानपत्र गुलाब पंखुडियों के गुलदस्ते में हम लता जी को अर्पित करते हैं।" - प्र. के. अत्रे

  जिन सुरों का वर्णन शब्दों से परे है, जिनकी आवाज केवल अनुभव का विषय है, ऐसे दैवी सुरों की मलिका लताजी ने अलग अलग संगीतकारों के निर्देशन में गाये हुए कुछ सदाबहार गीत -

⋇ आवाज:

⋇ गीत:

video load time: 2-5 sec

  अपने पसंदीदा गीतों का आनंद लीजिए!

   लता मंगेशकर यह किसी एक व्यक्ति का नाम अब नहीं रहा। यह एक पुरे विश्व में फैले हुए सप्तसुरों के साम्राज्य का नाम है जिसपर सूरज का कभी अस्त नहीं होता। इस साम्राज्य में एक सात सुरों का महल है। इस सुरों के राजप्रासाद में एक सिंहासन है, जिस पर विराजमान है एक गानसम्राज्ञी, जिसका नाम है - लता मंगेशकर। भगवान कृष्ण कि तरह लता जी ने भी हिंदी फिल्म संगीत का गोवर्धन अपने नाजुक स्वर से कई दशकों तक अनायास ही धारण कर रखा था। लता मंगेशकर यह किसी एक व्यक्तिविशेष का नाम नहीं है इसका एक और कारण है। अगर आप गौर से सुनेंगे तो पता चलेगा कि नौशाद जी की लता अलग है, सचिन देव बर्मन की लता अलग है, मदन मोहन की लता अलग है, चित्रगुप्त की लता अलग है, खय्याम की लता अलग है, रोशन कि लता अलग है, सी. रामचंद्र की लता अलग है, वसंत देसाई की लता अलग है, सलिल चौधरी की लता अलग है; शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी सब की लता अलग-अलग है। और किस की लता सब से सुरीली है ? इसका जवाब शायद भगवान के पास भी न हो...

   लता जी ने पहला हिंदी गाना १९४३ में गाया जिसके शब्द थे - हिन्दुस्तान वालों अब तो मुझे पहचानों... वाकई यह कहना गलत नहीं होगा कि जो शख़्स इस स्वर से परिचित नहीं है वह हिंदुस्तानी कहलाने के लायक भी नहीं है। लता जी के स्वर ने आज हम सबके जिंदगी में खुशियों की कितनी बेशुमार बौछार कर रखी है ! काश, हम लोग लता जी को 'भारतरत्न' से भी ऊँचा कोई पुरस्कार दे पाते...

   वैज्ञानिकों ने सागर की गहराई, आसमान की ऊँचाई, चाँद की शीतलता, सूर्य की प्रखरता आदि मापने में सैकडो साल बर्बाद कर दिए; लता जी की आवाज जिसने सुनी वो इन बातों को आसानी से समझ गया।

   ऐसा कौन होगा जिसका दिल लता जी के स्वर से न बहला हो? माँ की गोद में लेटा हुआ शिशु या शिशु को नींद के हवाले करने के काम में मग्न माँ, होमवर्क में मग्न छात्र या अपनी छात्रों के परीक्षा पत्रों की जाँच करते शिक्षक, दूर सरहद पर तैनात सैनिक या जहाज पर तैनात कप्तान, खेती में काम करनेवाला किसान या पहाडी पर गायों को चरानेवाला चरवाहा, अपनी दुकान में कपडा सिलाता दर्जी या कटिंग करता नाई, ट्रक चलाता ड्राइवर और रातभर जागकर सोसाइटी में राउंड लगाता वॉचमन, पान की दुकान पर पान बनाता पानवाला और पान चबाते पान बहाद्दर, इश्क़ के सपनों में खोये लैला-मजनू और मयखाने में शराब का लुफ्त उठाने वाले पियक्कड ... ऐसी कौन सी जगह बाकी रह गयी है जहाँ इस सर्वस्पर्शी स्वर ने हमारा साथ ना निभाया हो? अजी कहाँ तक बताये, हरिद्वार से जो लोग कुम्भ से लौटे वे भी बता रहे थे वहाँ के साधु भी मोबाइल पर लता जी के ही गीत सुनते हुए जप-ध्यान कर रहे थे! विविध भारती पर बजने वाला हर दूसरा गीत लता जी का ही होता है और अगर किसी कार्यक्रम में लताका गीत न सुनाई दें तो कुछ अधूरा-सा या खोया खोया सा लगने लगता है, यह हम सबका अनुभव है। बेगम परवीन सुलताना ने क्या खूब कहा है। वे कहती है, "जब मेरा जन्म हुआ तब मेरे अम्मी के गोद में जाने से पहले ही लता जी के सुरों ने मुझे गोद में ले लिया था।"

   भारत की स्वतंत्रता का सूरज लता जी के सुरीले स्वर हो साथ लेकर ही उगा। सन १९४९ में रेडियो पर एक गीत गूँजा - आयेगा आनेवाला दिल को छू लेनेवाला यह गीत सुनते ही यह स्वर किसका है यह जानने के लिए लोग लालायित हो उठे। इसके पहले लता जी का स्वर नूरजहां, सुरैया, शमशाद बेगम आदि समकालीन अन्य गायिकाओं की तरह किंचित अनुनासिक हुआ करता था। आयेगा आनेवाला सुनने के बाद यूँ लगा जैसे लता जी ने उस आवाज में गाना प्रारम्भ किया जिसे परमात्मा में उन्हें देकर यहाँ गाने के लिए भेजा था। हिंदी फिल्म संगीत में आने वाले दशकों में जो मधुर और मधुरतम गीतों की जो त्सुनामी आने वाली थी, यह छोटी सी झलक उसकी एक प्रारम्भ मात्र थी।

   लता-रफी जैसी दैवी आवाजों का गूंजना शुरू होते ही हिंदी फिल्म संगीत में मानो आत्मा का प्रवेश हुआ और उस सुनहरे युग का प्रारम्भ था जिसका सालों से सबको इंतजार था। साल गुजरते गये, गंगा बहती रही, पुरवैया चलती रही और लता जी गाती रही। लता जी का एकेक गाना हीट होता गया और संगीत सरस्वती को साज-श्रृंगार के लिए एकेक नया गहना मिलता रहा। हर संगीतकार यह चाहता कि लता जी उसके लिए गाये और हर नायिका यह चाहती कि उसको लता जी का स्वर मिले। हर कदम पर सफलता लता जी के कदम चूमती गयी और कुछ ही सालों में वे हिंदुस्तान की सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्ति बनके उभरी। और आज भी करोडो लोगों की यह ख्वाइश होती है कि जिंदगी में कम से कम एक बार लता जी से मिले। क्या आप लता जी से मिले है ? क्या अनुभव रहा आपका ? कमेंट्स में जरूर लिखियेगा।

   शक्कर का स्वाद तो सब जगह एक-सा होता है लेकिन अलग अलग हलवाई उसका प्रयोग करके अलग स्वादों के व्यंजन हैं। उसी तरह हम शुक्रगुजार हैं उन संगीतकारों के जिन्होंने लता जी के सुमधुर स्वर का अलग अलग तरीकों से करते हुए हमारे संगीत के खजाने में कई अनमोल मोती जोड दिए। ओ. पी. नैय्यर को छोडकर लता जी ने एस. डी. बर्मन, नौशाद, मदन मोहन, सलिल चौधरी, सी. रामचंद्रआर. डी. बर्मन, वसंत देसाई, चित्रगुप्त, रवि, जयदेव, रोशन, हेमंत कुमार, खय्याम, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंदजी आदि सभी संगीतकारों के निर्देशन में सैकडो गीत गाये।

  दो कलियाँ
Lata & Asha's childhood photo

  दो फूल
An early morning daily riyaz was a must...

  दो बहारें
Nothing remains to be conquered. Now the world rolls at their feet!

   अब जीतने के लिए कुछ भी शेष नहीं !

   लता जी पूर्णतावादी (perfectionist) है। अपने सांगीतिक अध्ययन के प्रारंभिक काल में उन्होंने अपने स्वरोच्चारों को निर्दोष बनाने के लिए काफी मेहनत की है। उनका कहना है कि मैं अभी भी सिख रही हूँ ! स्वभावतः लता जी विनम्रता की मूर्ति है, अपना गाना निर्दोष हो इसके प्रति वे काफी सजग रहती है। उनके गाने में कोई अनुभवहीन व्यक्ति दोष निकले यह उन्हें पसंद नहीं। हम अधिकांश लोग उनके गाने रेडियो, TV आदि पर सुनते है, लेकिन जिन लोगों ने लता जी को प्रत्यक्ष गाते हुए सुना है उनका कहना है - वो बात ही कुछ और है, जो मिठास प्रत्यक्ष सुनने में अनुभव में आती है वह किसी माईक या स्पीकर में नहीं आ सकती। बडे भाग्यवान हैं वे लोग जिन्होंने लता जी को रू-ब-रू गाते हुए सुना है, देखा है !

   इन तमाम शोहरत और दौलत के बावजूद लता जी अपनी निजी जिंदगी में एक अत्यंत साधारण मध्यमवर्गीय इंसान की तरह रहती है जो अपने परिवार के बहुत करीब है, आप्तजनों से घिरी रहती है और खुल के बातें करने में बडा रस लेती है। भगवान गणेश जी पर उनकी दृढ श्रद्धा है और गणेश जी के मंदिर में प्रातःकाल ध्यान करते हुए अनेकों ने उन्हे देखा है। खाना पकाना और स्वजनों को खिलाना उन्हें बहुत पसंद है। क्रिकेट के प्रति वे खास दिलचस्पी रखती है और सचिन तेंदुलकर उन्हें बहुत पसंद है।

   बहुत बार यह प्रश्न मन में उठता है कि लता जी की आवाज में हमें इतना अपनापन क्यूँ महसूस होता है? काफी गहराई से इस बात पर चिंतन करने से हमें इस बात का अहसास होता है कि स्वर भले ही लता नामक किसी गायिका का हो लेकिन उनके गाये हुए गीतों में व्यक्त हुए मनोभाव, बयाँ होनेवाली दास्ता हमारे सबके जीवन के साथ कहीं न कहीं बहुत करीबी से मिलती है।

   एक साक्षात्कार में लता जी से पूछा गया - आप अगले जन्म में कौन बनना चाहेगी? जवाब में उन्होंने कहा - कोई भी लेकिन लता मंगेशकर नहीं। यह सुनने वाले को बडा आश्चर्य होता है लेकिन असलियत तो ये है की बचपन में पिताजी के गुजरने के बाद, अपने भाई-बहनों को पोसते हुए , घर की जिम्मेदारी निभाते हुए जो कडा संघर्ष लता जी को करना पडा, उस संघर्ष के दौरान आए हुए कडवे अनुभवों का जहर उन्होंने अपने दिल में छुपाकर रखा है, क्वचित ही किसी साक्षात्कार में वे उन अनुभवों के बारे में बात छेडती है। दुनिया को तो केवल इतना पता है - उनके गले में परमात्मा ने अमृत की जो कुपि रखी हुई है, उससे झरनेवाला वह अमृत जो दशकों से हमें लुभाता आ रहा है और आने वाले कई सदियों तक लुभाता रहेगा। भगवान उन्हें लम्बी उमर दें !

   अनादि काल से विश्वजीत होने के लिए आदमी ने क्या क्या नहीं किया? अश्वमेध यज्ञ किये, राजसूय यज्ञ किये, धन लूटा, खजाने लूटे, विश्वयुद्ध भी किये.... लेकिन ये सब प्रयास विफल रहे। हमारी लतादीदी ने ये सबकुछ नहीं किया। उन्होंने माइक के सामने खडे होकर गीत गाया और दुनिया को जीत लिया। और एक बार नहीं, बार बार जीता, हमेशा हमेशा के लिए जीता। यह वही लता है जिसने बारह साल की उम्र में अपने पिता के आकस्मिक निधन के बाद अपनी तीन बहने और भाई की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर उनको बडा किया था, कभी खाने के लिए पैसे नहीं मिले तो मुरमुरे खाकर दिन गुजारे थे।अपनी मेहनत और देवदत्त प्रतिभा की बदौलत उनको आसमान से भी ज्यादा सम्मान मिला, शोहरत मिली, फिर भी उनके पैर जमीन पर ही टिके रहे। यही उनकी विशेषता है, महानता है। हो सके तो कोई इंद्रधनुष को छू ले लेकिन श्री गोपाल की मुरली से नाता बयां करने वाले इस दैवी स्वर का वर्णन शब्दों में करना संभव नहीं है।

   लता जी के हजारों सुरीले गीतों में से कई चंद सुरीले गीतों को चुनना उतनाही कठिन है जितना सृष्टि में दिखाई पडने वाले आश्चर्यों में से गिने चुने आश्चर्यों को चुनना। ऐसी सब की प्यारी लता दीदी जिनको अपने वतन से उतना ही प्यार है जितना कि संगीत से है। लता जी कहती है,"मैं हर संगीत के कार्यक्रम की शुरुआत परमात्मा की प्रार्थना से करती हूँ और कार्यक्रम के अंत में कहती हूँ - जयहिंद!"

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Snow

4 comments:

  1. शत शत नमन करता हूं वंदना।🇮🇳🙏🙏🙏💐

    ReplyDelete
  2. Excellent to hear mind-blowing hindi melody songs at one place thanks

    ReplyDelete
  3. अद्भुत लिंक मजा आ गया।👍👌👌

    ReplyDelete
  4. Very nice link for old songs lovers and the best singers we miss such great legend.

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