१९७५ - १९९० : लता जी की सांगीतिक यात्रा का यह लगभग अंतिम चरण, जिसमें लता जी ने कई बेहद सुमधुर अजरामर गीत गाए। जैसे -
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१९७५ से लेकर १९९० तक का दौर लता जी के संगीत सफर का वह दौर है जब उनका स्वर अपने चरम उत्कर्ष पर था जैसे कोई फूल जितना अधिक खिलता है उतना ही अधिक महकता है। इस दौरान राखी, परवीन बाबी, झीनत अमान, रेखा, श्रीदेवी जैसे कई नए चेहरों का बॉलीवुड में प्रवेश हुआ तथा रविंद्र जैन, राकेश रोशन जैसे कई नए संगीतकार भी उभरकर आये।
१९७८ में प्रदर्शित सत्यम् शिवम् सुंदरम् फिल्म से जुडा हुआ एक बडा ही दिलचस्प वाकया है। राज कपूर के साथ कुछ मतभेद होने के कारण लता जी का मूड अच्छा नहीं था और इस फिल्म के टाइटल गीत का रिकॉर्डिंग लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल लता जी से ही करना चाहते थे। बेमनी से लता जी तैयार हुई और उन्होंने कहा की केवल एक ही बार मैं इस गीत को गाऊंगी, अगर आपको पसंत आए तो ठीक वरना आप किसी और से गवा लीजिए, रीटेक करने के मूड में मैं नहीं हूँ। लक्ष्मी-प्यारे ने स्टूडियो में हारमोनियम पर लता जी को गाने की धुन सुनाई। तत्पश्चात लता जी ने वो गाना गाया और घर चली गई। जब फिल्म रिलीज हुई तब सत्यम् शिवम् सुंदरम्के इस गाने ने लोकप्रियता के शिखर को छू लिया और इसे लता जी के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक माना गया। ये गाना देश-विदेशों में विख्यात हुआ और कई लोगो ने इसे यह कहते हुए सराहा की हम हिंदी भाषा तो नहीं समझ सकते लेकिन यह गीत सुनकर हमें शांति का अनुभव होता है और हमारा मन किसी आधात्मिक दुनिया में चला जाता है। एक संगीत समीक्षक कहता है - लता जी के पश्चात् कई गायकों के मुँह से मैंने यह गाना सुना है, लेकिन जिस कशिश और रसानुभूति का अहसास लता जी की आवाज में होता है वो अन्य किसी के भी आवाज में नहीं। और उल्लेखनीय बात यह है लता जी ने आखाती देशों में संगीत के जितने भी कार्यक्रम पेश किये उन सभी कार्यक्रमों में इसी गीत को श्रोताओं ने सबसे ज्यादा पसंद किया। सचमुच, इतनी मुश्किल धुन केवल एक बार सुनकर अपने सातवें आसमान तक पहुँचने वाले स्वर में केवल लता जी ही गा सकती है।
सन १९९० के बाद लता जी ने फिल्मों में गाना बहुत ही कम कर दिया। लगभग छह दशकों तक फैले हुए उनके सांगीतिक जीवन में संगीत का वो उदात्त रंग बसा है जो भजन, लोरी, गजलें, प्रेमगीत, विरहगीत, बालगीत आदि माध्यमों से अभिव्यक्त होते हुए श्रोता को एक अलौकिक धरातल का अहसास कराता है। कितने भाग्यशाली है हम भारतवासी जिनका जन्म उस कालखंड में हुआ है जब इस देश के हर प्रान्त के हर गांव का वायुमंडल उस स्वर से गुंजायमान हुआ है जो हमारे सांस्कृतिक छवि की सबसे महत्त्वपूर्ण और मुकम्मल पहचान है।
लताजी का जीवन सादगी से भरा तो है ही, बजाय इसके वह ऐसे मर्यादापूर्ण नैतिक तत्त्वों से आबद्ध है जिससे भारतीय संगीत और संस्कृति की गरिमा दर्शन अवं एहसास होता है। आजकल का दिशाहीन संगीत हम जब सुनते हैं तब यह बात और भी स्पष्टता से अनुभव में आती है। किसी संगीतकार की कभी हिम्मत नहीं हुई की वह किसी सस्ते या अभद्र गीत को लेकर लता जी के पास जाए, न ही किसी फिल्म डायरेक्टर की जो इस गान सरस्वती के सुरों से सजे गीत किसी असभ्य या भ्रष्ट नायिका के उपर प्रदर्शित करे।
पिता के अचानक निधन के बाद १३ साल की उम्र में भाई-बहनों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठनेवाली लता से लेकर 'वॉइस ऑफ द मिलेनियम' भारतरत्न लता तक की यात्रा एक प्रामाणिक संघर्ष की सफल निष्पत्ति है। अपनी किताब में लता जी लिखती है - जिंदगी में सफलता से पहले आपको असफलता मिलती है, यह आम बात है। मैंने स्वामी विवेकानंद और संत ज्ञानेश्वर जैसे महापुरुषों के चरित्रों से बडी प्रेरणा पायी है। चाहे कितनी भी विफलताए आए, हार मत मानिए। सफलता एक दिन जरूर आपके कदम चूमेगी।
वेद प्रकाश वेदांत लता जी के बारे में कहते है -
कंठ बिराजे सरस्वती
जिह्वा पर बिराजें राम,
युगों युगों तक अमर रहेगा
लता जी आपका नाम ।।
Lata Mangeshkar, the "Nightingale of India," is one of the most iconic voices in the history of Indian music. Her contribution to Hindi cinema and Indian music in general is unparalleled, spanning decades and transcending generations. Though Lata's career began in the early 1940s, her work between 1976 and 1990 marked a defining period of her legacy, cementing her place as the country's most beloved playback singer. This phase in her career is significant because it witnessed not only her continued success but also her ability to adapt to changing musical trends while maintaining the unique emotional depth and vocal brilliance that defined her. During these years, Lata Mangeshkar's voice continued to captivate audiences, and her songs became anthems of their time.
Between 1976 and 1990, a number of new music directors, including Ravindra Jain, Rajesh Roshan, Shivhari, Ram Laxman, and others, were involved in the film industry and fully utilized Lata ji's boundless talent, in addition to more established ones like R. D. Burman, Laxmikant-Pyarelal, and Kalyanji-Anandji. Lata ji sung playback for a few movies even after 1990. Lataji's ability to sing over 30,000 songs in over 25 languages has stunned the music industry. For many centuries to come, this record cannot be broken. Lata received the 'Bharat Ratna' in 2001, the nation's highest civilian honor. Everyone, whether young or old, has been unable to avoid the magic trap of this heavenly voice.
In conclusion, Lata Mangeshkar’s performances between 1976 and 1990 were a testament to her unmatched talent, versatility, and ability to stay relevant despite the changing landscape of Indian film music. Her ability to adapt while maintaining the core essence of her vocal identity allowed her to remain the queen of Bollywood playback singing during this period. As the decades pass, her voice continues to inspire new generations, and her place as one of the greatest playback singers of all time remained secure.
Some of the most popular songs of Lata Ji in this period (1976 - 1990) are: Naam Gum Jaayega,Tere Bina Zindagi Se Koi,Yashomati Maiya Se Bole,Tujhe Bulayen Yeh Meri Bahen,Man Kyoon Behka Re Behka,Zindagi Pyar Ka Geet Hai ,Nindiya Se Jaagi Bahaar,Sun Sahiba Sun Pyaar Ki Dhun,Humne Sanam Ko Khat Likha,Kabhi Kabhie Mere Dil Mein
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