२० भाषाओं में १६००० से भी अधिक गीत गाने के बाद और ढेर सारे पुरस्कार प्राप्त करने के बाद आशा जी का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में दर्ज है। आइये, हर रंग के गाने को बखूबी से अदा करने वाले इस अष्टपैलू स्वर से अलंकृत कई कर्णमधुर गीत :
अपने पसंदीदा गानों का आनंद लीजिए! हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम काल के लोकप्रिय गीतों का खजाना अब Google Playstore पर भी। डाउनलोड करें यह ऐप-गीत बहार: The Garden of Songs
"दिल है छोटा सा, छोटी-सी आशा,
मस्ती भरे मन की, भोली सी आशा,
चाँद तारों को, छूने की आशा,
आसमानों में उडने की आशा"
ये बोल सुनने के बाद यूँ लगा जैसे ये उस लडकी के उन अरमानों का वर्णन है, जिन्हे लेकर छोटी-सी आशा मंगेशकर प्लेबैक सिंगर बनने का सपना लेकर संगीत क्षेत्र में आयी थी। आशा जी का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा, लेकिन कठोर परिश्रम और निरंतर रियाज से तराशा यह स्वर वाकई में आसमान को छू गया और करोडो संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाला एक चहिता स्वर बन गया।
चाहे किसी भी प्रकार का गीत क्यूँ न हो - बालगीत, भक्तिगीत, प्रेमगीत, विरह गीत, शास्त्रीय गीत, लोकगीत, नाट्यगीत, गज़ल, पॉप या कैबरे - इनकी आवाज में गाया हुआ हर किस्म का गीत सुनने के बाद लगता है जैसे यह गीत इसी आवाज के लिए ही तो बना था! आशा जी की आवाज संगीत उद्यान में अंकुरित उस आरोही लता के समान है जिस पर कई रंग के फूल खिलते है, लेकिन ऐसा पौधा धरती पर थोडे ही पाया जाता है !
लता जी और आशा जी के आवाजों की हमेशा तुलना होती रहती है और अंत में यह तय कर पाना बडा कठिन होता है कि कौन सी आवाज अधिक श्रेष्ठ है। असल में तो श्रेष्ठ-कनिष्ठ की कोई बात है ही नहीं, दोनों आवाजें अपनी अपनी जगह महान है, सुरीली है। एक तो प्रकृति की उपजत दी हुई दुर्लभ देन है और दूसरी आवाज कठोर परिश्रम से निखरा हुआ गहना है। एक स्वर सरस्वती देवी की सुन्दर आत्मा है और दूसरा है सुन्दर काया। कोई कितनी भी कोशिश करे, लता नहीं बन सकती लेकिन आशा बनने के लिए कई जन्म तो साधना करनी पडेगी ! कोई ८० साल की उम्र में २० साल की नायिका के लिए गाना गाए और वह हिट हो जाए, यह चमत्कार तो ये दो बहनें ही कर सकती है।
आशा जी के बहुआयामी स्वर की प्रतिभा को पहचाना था उनके भाई पं. हृदयनाथ जी ने और संगीतकार राहुल देव बर्मन ने। ऐसा कोई चैलेंज न था जो इन संगीतकारों ने आशा जी के सामने प्रस्तुत किया और आशा जी ने उसे पूरा नहीं किया। इन दोनों के संगीत निर्देशन में आशा जी ने कई विविधता भरे गीत गाये जो हमारे सांगीतिक खजाने की अद्भुत सम्पदा है। शब्दोच्चारों पर का इनका प्रभुत्व इतना जबरदस्त है कि वे शब्दों को मनचाहे रूप से घुमा सकती है, मोड सकती है, आंदोलित कर सकती है। उनका शब्दोच्चारण ऐसे पारदर्शी पानी की तरह सुस्पष्ट है जिसमे आरपार तल दिखता हो। ८७ साल की उम्र में भी बिना किसी वाद्य का सहारा लिए आशा जी कभी कभार गा लेती है तो सुनने वाले को लगता है कि लफ़्जों का आपस में यह विचार-विमर्श जरूर हुआ होगा कि आशा जी के मुख से कभी निकलेंगे तो सुरों में ही निकलेंगे। वे कभी बेसुर होती ही नहीं।
आशा जी का कहना है कि संगीत के क्षेत्र में उन्हें बेमनी से आना पडा। वैसे तो उनका स्वभाव एक गृहिणी का है जो घर चलाने, खाना पकाने और बाल बच्चों का लालन पालन करने में रुचि रखती है। बचपन में पिताजी के गुजरने के बाद छह सदस्यों वाले परिवार की आजीविका चले, इसलिए पैसा कमाना जरुरी था। उस समय फिल्म इंडस्ट्री में आमीरबाई, शमशाद बेगम, मुबारक बेगम जैसी बुलंद आवाजों वाली गायिकाएँ थी जो कहा करती कि ये मराठी लडकियाँ हिंदी और उर्दू में क्या गा पायेंगी। अपनी उर्दू का शब्दोच्चारण निर्दोष हो इसलिए उन्होंने एक अध्यापक से कई पाठ लिए और कडी मेहनत करके अपनी हिंदी तथा उर्दू का व्याकरण और शब्दोच्चार सुधार लिए।
आशा जी को लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री में उनके लिए सबसे बडी चुनौती थी दीदी के साथ गाकर अपनी अलग पहचान बनाना। उनका कहना है कि अगर वे दीदी के स्टाइल की नकल करती तो अपनी पहचान कभी न बना पाती। उन्होंने अपनी अलग शैली को विकसित किया और उस बेमिसाल मुकाम को हासिल किया जो आजकल के गायक-गायिकाएँ बिना शास्त्रीय संगीत सीखे और परिश्रम के हासिल करना चाहती है।
एक बार आशा जी, संगीतकार आर. डी. बर्मन और गीतकार गुलजार साथ में बैठकर बातें कर रहे थे तब इन तीनों उस्तादों के बीच बडा ही रोचक और रंजक संवाद हुआ। आशा जी तो दुविधा भरे प्रश्न पूछकर सामने वाले को उलझन में डालने में माहिर है। उन्होंने बर्मनदा से पूछा - बर्मन साहब, आप गुलजार जी की गीतों पर इतनी सुन्दर सुन्दर धुनें बनाते है तो हर बार (लता)दीदी से ही क्यूँ गवा लेते है ? मुझसे क्यूँ नहीं ? आशा जी के इस मार्मिक सवाल पर बर्मनदा जवाब देते भी तो क्या देते ! उन्होंने इस प्रश्न को टाल ही दिया। लेकिन गुलजार जी ने इस प्रश्न का बडा ही सुन्दर उत्तर दिया। उन्होंने कहा - चाँद पर सबसे पहला कदम किसने रखा था ? नील आर्मस्ट्रॉंग ने। और दूसरा कदम रखा एडविन ऑल्ड्रिन ने। एडविन नील आर्मस्ट्रॉंग से सिर्फ एक कदम पीछे था लेकिन चूँकि नील आर्मस्ट्रॉंग ने पहला कदम रखा था इसलिए सारी दुनिया उसीका ही नाम लेती है। उसी तरह लोग दीदी का नाम प्रथम लेते हैं यह बात सच है लेकिन आशा जी, आप भी उसी चाँद पर है जिस चाँद पर दीदी खडी है। क्या बढिया जवाब है ! लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए की आशा जी ने स्वयं कहा था - मेरी आवाज का विविधतापूर्ण प्रयोग केवल बर्मन साहब ने ही किया, और किसी संगीतकार ने नहीं। उनकी राय में बर्मनदा ने उनसे गवाए हुए गीतों में 'दईया ये मैं ये कहा आ फसी' यह सबसे कठिन एवं चुनौतीपूर्ण गीत रहा।
आशा जी का विश्वास है कि आदमी इस संसार से जब जाता है, तब उसका शरीर तो साथ में नहीं जाता किन्तु उसका स्वर, उसकी कला हमेशा उसके साथ-साथ जाते हैं। वे कहती है कि उनकी यह बेजोड आवाज पूर्व के कई जन्मों में की हुई साधना का एक सुरीला फल है।
Asha’s journey into playback singing began in the 1940s when she was just a teenager. Born in 1933 to a family of musicians, Asha Bhosle was destined to pursue a career in music. Her elder sister, Lata Mangeshkar, was already a well-established playback singer, and Asha’s initial years in the industry were often overshadowed by her sister's success. However, While Lata’s voice was known for its purity and melody, Asha’s voice was more adventurous, spontaneous, and full of raw energy. What truly set Asha apart was her ability to break the conventional mold and venture into uncharted territories. Her unique tonal quality, coupled with her ability to convey a wide array of emotions, made her a natural fit for different genres of music.
Growing up with her sister, Lata, the melody queen, Asha developed her own unique singing style, which has been one of her best qualities. Similar to Lata ji, Asha ji's songs are all finished pieces of art. Clarity, tenderness, calmness, affection, flirtation, and other qualities are all evident in his voice. Asha ji would sing any kind of song like playful, mischievous, devotional, patriotic, passionate, separational, philosophic, woeful with equal ease and authority. Every vibrant mood of Mahefil is impeccably captured in her three-minute song ! To remain at the peak of popularity for more than half a century is the greatest reward for any artist. Like Lata and Madan Mohan duo, Asha and O. P. Nayyar contributed a number of memorable songs to the movies.
Asha Bhosle’s distinctive voice, her ability to adapt to various musical genres, and her passionate delivery have made her a beloved figure in the world of Indian cinema. Her ability to adapt to evolving musical trends, her commitment to her craft, and her willingness to experiment with new styles helped her maintain a steady place in the industry for over six decades. Her enduring legacy as one of India’s greatest playback singers continues to influence artists even today. She proved that her artistry went beyond the boundaries of film music, showcasing a broader range of skills and deepening her legacy as a singer. Asha Bhosle’s work is a testament to the power of a voice that knows no boundaries, a voice that will continue to inspire generations to come.
Some of the most popular songs of Asha Bhosle are: Jaaiye Aap Kahan Jayenge,Hum Intezar Karenge Tera Qyamat Tak,Mud Mud Ke Na Dekh Mud Mud Ke,Dum Maro Dum,Dil Cheez Kya Hai Aap Meri,Aage Bhi Jaane Na Tu,Jab Chali Thandi Hawa,In Aankhon Ki Masti Ke,O Saathi Re Tere Bina Bhi,Najar Lagi Raja Tore Bangle Par
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