अपने समय में कामयाब होना एक चीज है और वोह लोकप्रियता गुजरते वक्त के साथ बनी रहना एक कलाकार की उस सफलता को दर्शाता है जिसका संगीत कालातीत हुआ हो। मदन मोहन की धुनों की विशेषता यह थी की वो बस सुननेवाले को पता भी नहीं चलता की वो मीठे सुर कानों से सीधे उसके दिल में कैसे और कब उतर गये। उनके कुछ सफल गीत –

⋇ संगीत:

⋇ गीत:

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  अपने पसंदीदा गीतों का आनंद लीजिए!😊


    बहलाये जब दिल ना बहले, तो ऐसे बहलायें,
    गम ही तो है प्यार की दौलत, ये कहकर समझायें,
    काँटों पर चलनेवालों को, चैन कहाँ, हाय, आराम कहाँ,
    हम प्यार में जलनेवालों को ...

   शब्दों की लडियाँ ऐसी गूथीं गईं हैं कि, इन गीतों की खूबसूरती आज भी ज्यों की त्यों बरकरार है। मदन मोहन और लता जी के संयुक्त प्रयास से जिन गीतों की रचना हुई, सारे के सारे श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध करते हैं। जब जब मदन मोहन-लता-राजेंद्र कृष्ण यह तिकडी एक साथ आयी, तब तब दिल बहलाने वाले एक सुमधुर अमर गीत का जन्म हुआ। ऐसा संयोग शायद आनेवाले सैकडों सालों में दुबारा कभी न बन पाये ...

  अपनी दिलकश धुनों से मदन मोहन ने यह साबित कर दिया था कि संगीत की फॉर्मल शिक्षा न लेने के बावजूद भी कोई चोटी का संगीतकार बन सकता है। लता जी उन्हें 'गजलों का बादशाह' कहा करती थी। लता और मदन मोहन की जोडी भारतीय फिल्म संगीत के सबसे कामयाब जोडियों में से एक है। धुन की रचना करने के बाद मदन मोहन जी अक्सर लता जी से कहते - मैंने ऐसी ऐसी धुन बनाई है, अब तुझे जैसा पसंद है वैसे गा और लता जी बाद में उस धुन में अपने सुरों से अमृत का संचारण कर देती। मदन मोहन के संगीत में लता जी की गायी हुई एक से एक बेमिसाल गजलें हैं।

 कौन भूल सकता है फिल्म 'वह कौन थी' का वह अमर गीत - लग जा गले के फिर ये हंसी रात हो न हो, शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो न हो...., जो कि लता जी के भी सबसे पसंदीदा गानों में से एक है, इस गाने के साथ एक दिलचस्प वाकया जुडा हुआ है। मदन मोहन जी ने हार्मोनियम पर इसकी धुन बनाई और लता जी के दिल पिघलाने वाले आवाज में यह गीत स्टूडियो में रिकॉर्ड भी हो गया। यह गीत सुनकर स्वयं मदन मोहन दंग रह गए ! जो तारीफ हमेशा शब्दों से बयां होती थी, इस बार आँसुओं के माध्यम से हुई। लता जी के आवाज ने स्वयं मदन मोहन का भी दिल हिला कर रख दिया और वो अपने आँसू नहीं रोक पाये।

 १९७५ में एक टीवी कार्यक्रम में उस दौर के सब से मशहूर और कामयाब संगीतकार नौशाद ने कहा था कि 'आपकी नजरों में समझा' और 'है इसी में प्यार की आबरू' इन मदन मोहन की दो धुनों के बदले वो अपना पूरा संगीत मदन मोहन को समर्पित करने के लिए तैयार है। गीतों के शब्द मदन मोहन इस कुशलता साथ अपनी धुनों में पिरो देते थे कि वो धुन सुनने वाले की रूह की गहराइयों को छू लेती थी। एक लता जी ही थी जो उनकी धुनों को सौ प्रतिशत न्याय दे सकी, और किसी गायिका की आवाज में यह काबिलियत नहीं थी। इस संगीत के जादूगर को आपने जीवन में एक बार भी फिल्मफेयर अवार्ड नहीं मिला इससे बडा एक कलाकार का क्या दुर्दैव हो सकता है?

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