हिंदी फिल्मों के सुनहरे दौर के संगीतकारों की चर्चा करने हम चले और एस. एन. त्रिपाठी को तो भूल ही गए। इस प्रतिभावान संगीतकार के साथ अक्सर ऐसा ही होता रहा है! अगर आप एक बार भी इनका संगीत सुनोगे तो इनको हमेशा याद रखोगे, यह हमारा दावा है।

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  श्रीनाथ त्रिपाठी अर्थात् एस. एन. त्रिपाठी ने जितनी भी फिल्मों को संगीत दिया, उनमें से आधी से भी ज्यादा फिल्में धार्मिक तथा ऐतिहासिक रही। उनकी फिल्मों में भारतीय संस्कृति तथा इतिहास का सरस ढंग से प्रदर्शन हुआ करता था। इनकी बेहद मीठी और मर्मस्पर्शी धुनें सुनने के बाद इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि एस. एन. त्रिपाठी का शास्त्रीय संगीत का अध्ययन तथा रागों की समझ कितनी गहरी तथा व्यापक हुई होगी। इनकी धुनें उतनी ही रोचक और चैतन्यमयी है जैसे थिरकर नाचनेवाला रंगबिरंगा फव्वारा या क्षणक्षण में एक डाली से दूसरी डाली पर लीलया उछलता हुआ पंछी। एस. एन. त्रिपाठी का संगीत और लताजी का स्वर एक बडा ही सुमधुर मेल रहा।

  एस. एन. त्रिपाठी का व्यक्तित्व बडा ही प्रभावशाली और आकर्षक था जिसके चलते इन्होंने फिल्मों में भी कई रोल किए। इन्होने किया हुआ हनुमानजी का रोल लोगों को काफी पसंद आया। इन्होने की हुई कतिपय रचनाएँ इतनी पुरानी हैं कि उनके वीडियो भी उपलब्ध नहीं हैं।

  एस. एन. त्रिपाठी के गीतों का हर एक अंग - चाहे वो गाने के प्रारम्भ में आनेवाला आलाप हो, मुखडा या अन्तरा के बोल हो, बीच में बजाये जानेवाले संगीत के टुकडे हो या ताल तथा लय को लेकर किये गए उतार चढाव हो, हर चीज में उनकी प्रतिभा झलकती है। यूँ लगता है जैसे गीत के बोल सप्तसुरों का सौंदर्य बढा रहे है और संगीत के सुर बोलों का। हर चीज एक दूसरे की पूरक लगती है और इतनी कुशलतापूर्वक पिरोयी गयी है कि हजारों में कोई विरला संगीतज्ञ ही ऐसी रचनाएँ कर पाता है जिसके अंतःकरण के सुर परमात्मा के सुरों के साथ मिल चुके हो। संगीतकार चित्रगुप्त कुछ काल इनके असिस्टेंट रहे। चित्रगुप्त के संगीत में हमें एस. एन. त्रिपाठी के संगीत की कई झलके जगह जगह पे दिखाई देती है। त्रिपाठीजी का संगीत सौ प्रतिशत हिंदुस्तानी संगीत रहा है, इसे पाश्चात्य संगीत का तनिक-सा भी स्पर्श नहीं हुआ है। बीट्स पर आधारित पाश्चात्त्य संगीत की रचना करना मूलतः आसान है , संगीत निर्देशक की असली प्रतिभा की जाँच तो उसके द्वारा की गई हिंदुस्तानी संगीत की रचना से हुआ करती है।

  जिस सम्मान और पुरस्कारों के एस. एन. त्रिपाठी हकदार थे वे कभी उनको मिले नहीं, यह सोचकर संगीत प्रेमियों को बडा दुःख होता है। एस. एन. त्रिपाठी के संगीत का जादू ऐसा है कि एक बार भी जो कोई जिज्ञासु उनकी धुनें सुनने को जाता है, उसके हाथों में सदाबहार गीतों का खजाना लग जाता है, जैसा की आज हमें और आपको मिला है। कितना भी लूटो या बाँटो यह घटनेवाला नहीं !

  S. N. Tripathi, one of the unsung giants of Hindi film music, holds a place of reverence in the hearts of connoisseurs of classical and folk music. Although he may not have achieved the commercial success of some of his contemporaries, his contribution to the Hindi film industry is immeasurable, and his music remains timeless. Known for his ability to blend Indian classical music with contemporary tunes, Tripathi's work was characterized by rich melodies, intricate compositions, and an unwavering commitment to tradition. His contribution spanned several decades, and his music continues to be cherished for its depth, emotive quality, and connection to the cultural fabric of India.

  For the most part, S. N. Tripathi's music was confined to historical and mythological movies. He was fluent in both Sanskrit and other languages. His melodies, which were full of sweetness and tenderness and which were accompanied by amazing dances, became classics in movie soundtracks. The song "Na kisi ki aankh ka Noor hoon" is taken from the movie Lal Qila. He used just two instruments—the flute and piano—to record this lovely song in Rafi's voice. In spite of this, this catchy song expresses a great deal of emotion! 'Hatimtai''s soundtrack demonstrates the authority he had on Mughal music as well. Did you know that one of Narendra Modiji's favorite songs is the catchy tune "O Pawan Veg Se Udne Wale Ghode," which was composed by S. N. Tripathi and sung by Lataji in the movie "Jai Chittor"?

  Throughout his career, S. N. Tripathi remained a quiet and humble figure in the Hindi film industry, choosing to let his music speak for itself rather than seeking fame or recognition. Despite the fact that his compositions were often overshadowed by the works of more commercially successful composers, his music has stood the test of time and continues to be appreciated by those who understand the depth and complexity of his work. Unlike other music directors, his music was totally and purely based on Indian classical music, there was no mixture of any western tones. His music was often a reflection of his own deep spirituality and understanding of the human condition. Many of his songs, whether devotional, romantic, or patriotic, continue to evoke strong emotions in listeners, transcending the era in which they were created.

  Some of the most popular songs of MMMM are: Aa Laut Ke Aaja Mere Meet, Zara Saamne Toh Aa O Chhaliye, Na Kisi Ki Aankh Ka Noor Hoon, Baat Chalat Nayi Chunari Rang Daari, Jhanan Jhan Jhan Baaje Payaliya, Main To Janam Janam Ki Pyasi, Shaam Bhayi Ghanshyam Na Aaye, Jeevan Ki Beena Ka Taar Bole, Raat Suhani Jhoome Jawani, Chhanan Chhoom Chhanan Chhoom Payal Baaje Mori Aali

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